Wednesday 6 March 2013

एक और घोटाला का अंकुरण

यूपीए सरकार के घोटालों की लंबी फेहरिस्त में अब किसान कर्ज माफी घोटाला भी जुड़ गया है। २००९ के आम चुनाव के पहले मनमोहन सरकार ने किसानों के ५२ हजार करोड़ रुपए के कर्ज माफ किए थे। अब कैग की जांच-पड़ताल में पाया गया कि इस कर्ज माफी योजना में अपात्रों के कर्ज को माफ कर दिया गया और कई पात्र लोगों को इस योजना का लाभ नहीं मिला। कैग की नमूना जांच के आधार पर माना जा रहा है कि इसमें लगभग १० हजार करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है। राजनेताओं व बैंकों के अधिकारियों की मिलीभगत से उन लोगों के भी कर्ज माफ कर दिए गए, जिन्होंने वाहन खरीदने या घर बनाने के लिए कर्ज लिया था। कर्ज माफी की योजना देश के उन जिलों में लागू की गई थी, जहां कर्ज के बोझ में डूबे किसान आत्महत्या कर रहे थे। कैग ने पाया कि बैंकों के पास दस्तावेजी रिकॉर्ड भी मौजूद नहीं हैं, जिनके आधार पर कर्ज माफ करने का निर्णय लिया गया। कैग को उपलब्ध कराए गए कई दस्तावेजों पर लिखे आंकड़ों में फेरबदल किया गया था। कई लोग कर्ज माफी के लिए निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करते थे। यूपीए लोकसभा चुनाव जीतने के लिए इस कदर कमर कसे हुए था कि अपात्रों को भी कर्ज माफी का लाभ दे दिया गया। कैग की रिपोर्ट में हुए खुलासे के आधार पर यह निष्कर्ष निकालना अनुचित नहीं होगा कि इस घोटाले में राजनेताओं व बैंक अफसरों की संलिप्तता रही होगी। दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करते हुए निजी व्यावसायिक बैंकों के कर्जदारों के कर्ज भी माफ कर दिए गए। वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने बिना किसी दस्तावेजी प्रमाण के अरबन कोऑपरेटिव बैंक से जुड़े ३३५ करोड़ रुपए की कर्ज माफी का दावा मंजूर कर लिया। कैग की रिपोर्ट ने वित्त मंत्रालय को कठघरे में खड़ा कर दिया है। संसद में विपक्षी दलों की यह मांग पूरी तरह जायज है कि कैग की रिपोर्ट को आधार बनाकर इस घोटाले की सीबीआई जांच कराई जाए। संसद की लोकलेखा समिति इस घोटाले के आपराधिक पहलुओं की जांच करने में सक्षम नहीं है। यदि मनमोहन सरकार ने इस घोटाले की लीपापोती करने की कोशिश की तो उसे भारी राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ेगा। सरकार के सामने विश्वसनीय जांच कराने का आदेश देने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है।

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