राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 जारी किया
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा के मामलों से कारगर ढंग से निपटने के लिए एक आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 को 3 फरवरी 2013 को जारी किया. इसमें बलात्कार पीड़िता की हत्या के मामले में मृत्युदंड का प्रावधान किया गया. अध्यादेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह पूरे देश में लागू हो गया, लेकिन 6 माह के भीतर इस अध्यादेश को संसद से पास करवाया जाना अनिवार्य है.
इससे पहले केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इस अध्यादेश को मंजूरी प्रदान की थी. 16 दिसंबर 2012 के दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म मामले को देखते हुए सरकार ने न्यायाधीश जेएस वर्मा समिति का गठन किया था और महिलाओं के खिलाफ अपराधों से कारगर ढंग से निपटने के उपायों के बारे में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया था.
अध्यादेश के मुख्य बिंदु:
• अध्यादेश में भारतीय दंड संहिता, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और साक्ष्य अधिनियम जैसे अपराध कानूनों में संशोधनों को भी शामिल किया गया.
• अध्यादेश में भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड संहिता प्रक्रिया (सीआरपीसी) और साक्ष्य अधिनियम में संशोधन का प्रावधान है. इसमें महिलाओं का पीछा करने, ताक-झांक, तेजाब फेंककर हमला करने, अभद्र भाव भंगिमा यथा शब्दों और अनुचित तरीके से स्पर्श करने को लेकर सजा बढ़ाने का प्रावधान है.
• इसमे वैवाहिक बलात्कार को भी इसके दायरे में लाया गया है.
• अध्यादेश में बलात्कार के उन मामलों में मौत की सजा का प्रावधान किया है जिसमें पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह स्थायी रूप से कोमा में चली जाती है. इस तरह के मामलों में न्यूनतम 20 वर्ष के कारावास की सजा का प्रावधान है, जिसे दोषी के आजीवन कारावास या मृत्यु तक बढ़ाया जा सकता है. इस संबंध में विशेषाधिकार न्यायालय को प्रदान किया गया.
• 18 साल से कम उम्र की महिलाओं का आरोपी के साथ आमना-सामना नहीं कराया जाएगा लेकिन जिरह के प्रावधानों को बरकरार रखा गया है.
• अगर कोई सरकारी सेवक यौन अपराध के मामले में सहयोग नहीं करता है या कानूनी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाता है तो उसे कारावास की सजा देने की सिफारिश की गई है.
• अगर तेजाब हमले का सामना कर रही महिला आत्मरक्षा में आरोपी की हत्या कर देती है तो उसे आत्मरक्षा के अधिकार के तहत सुरक्षा मिलेगी.
भारत के संविधान का अनुच्छेद 123:
भारत के संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति को उस समय अध्यादेश द्वारा विधान बनाने की शक्ति है जब उस विषय पर तुरंत ही संसदीय अधिनियमिति बनाना संभव नहीं है.