मीडिया स्वनियमन ढकोसला है : मार्कण्डेय काटजू
अभिमन्यु कुमार
नई दिल्ली, १६ जनवरी
नई दिल्ली, १६ जनवरी
“इलेक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा ‘स्वनियमन’ की वकालत करना और उसका
अभ्यास करना, सामाजिक ज़वाबदेही से बचने की एक ‘चाल’ है”. ये बातें पूर्व न्यायमूर्ति और प्रेस काउंसिल के
अध्यक्ष मार्कण्डेय काटजू ने भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में कही.
सम्मेलन का विषय मीडिया पर ‘स्वनियमन बनाम
वैधानिक नियमन’ था। उन्होने कहा कि
पूर्ण रूप से अनियंत्रित इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जन सारोकार के मुद्दे के प्रति सही
ढ़ंग से अपनी जिम्मेदारी नही निभा रहा है बल्कि पैसे की उगाही में ज्यादा ध्यान दे
रहा है. ज़ी न्यूज-जिंदल विवाद इसका उदाहरण है. उन्होने कहा कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया
से पेड न्यूज और अन्य कमियों को दूर करने के लिए भारतीय प्रेस परिषद् को मीडिया
परिषद् में परिवर्तित कर दिया जाना चाहिए. मीडिया परिषद् प्रभावी ढंग से काम कर
सके इसके लिए उसे
कड़ी सजा देने और लाइसेंस को रद्द करने के अधिकार देने चाहिए.
काटजू
ने आगे कहा कि मीडिया देश के वास्तविक मुद्दों जैसे गरीबी, कुपोषण आदि पर बात नही करता. वह सनसनी
फैलाने वाले कार्यक्रम प्रसारित कर टीआरपी बढ़ाने की जुगात में लगा रहता है. उन्होंने
अन्ना हजा़रे के आन्दोलन का उदाहरण देते हुए कहा कि मीडिया ने इस आन्दोलन को सनसनी
तौर पर खड़ा किया जिसका अंतिम परिणाम शून्य रहा. क्या इस आन्दोलन के बाद देश से
भ्रष्टाचार एक प्रतिशत भी कम हुआ? उन्होंने दिल्ली सामूहिक बालात्कार मामले के टीवी कवरेज पर भी
प्रश्न खड़े किये और कहा कि लगातार पंद्रह दिनों तक दिन-रात इस मुद्दे को दिखाना
उचित था?
क्या उन पंद्रह दिनों में देश भर में यही एक मुद्दा था?
उन्होने
पेड न्यूज के मुद्दे पर कहा कि मीडिया पेड न्यूज को रोकने का प्रयास नही करती है, उल्टा इसे बढ़ावा दे रही है.
काटजू
ने अंत में ‘मीडिया
काउंसिल’ के
रुप में अधिकार प्राप्त स्वायत्त संस्थान की स्थापना को समय की आवश्यकता बताया जो
बेलगाम मीडिया पर अंकुश लगा सके, उसके गलतियों पर उसे दंडित कर सके और जरुरत पड़ने पर उनके लाइसेंस
को रद्द कर सके.
सम्मेलन
में वरिष्ठ पत्रकार और ‘द हिंदू’ के पूर्व संपादक एन. राम ने काटजू की बातों पर सहमति जताते हुए कहा
कि प्रत्येक मीडिया संस्थान को एक स्वतंत्र लोकपाल रखना चाहिए जो समाचार पत्रों और
चैनलों की सामग्री पर नज़र रख सके. ‘द हिंदू’ इस नीति का पालन करता है दूसरे संस्थानों को भी इस नीति का पालन करना
चाहिए. तभी मीडिया संस्थान जनता के प्रति उत्तरदायी बना पायेगा. एन राम ने मीडिया
पर सरकारी नियंत्रण को ख़ारिज करते हुए कहा कि सरकारी नियंत्रण अभिव्यक्ति की
आज़ादी को प्रभावित करेगा. उन्होने स्व नियमन को निरंकुश बताया.
अंग्रेजी
समाचार चैनल ‘हेडलाइंस
टुडे’ के
प्रबंध सम्पादक राहुल कंवल ने स्वनियमन के पक्ष में कहा कि मीडिया की अभिव्यक्ति की आज़ादी की रक्षा
‘स्वनियमन’ ही कर सकता है. राष्ट्रीय प्रसारण
मानक संघ (एनबीएसए) समाचार चैनलों के सामग्री पर कड़ी नज़र रखता है और चैनल की
गलतियों पर उसे दंड भी देता है. इस संस्थान ने कई चैनलों के खिलाफ कड़े फैसले भी सुनाये
हैं. मीडिया पर सरकारी नियंत्रण सेंसरसिप लगाने और उसकी अभिव्यक्ति पर अकुंश लगाने
जैसा होगा. सरकारी नियंत्रण या सरकार के अधीन स्वायत्त संस्थान यदि मीडिया का नियमन
करेगी तो निजी चैनल दूरदर्शन की तरह काम करने लगेगा और सरकारी अधिकारी उन्हें
बतायेंगे कि क्या दिखाना है और क्या नही. मीडिया का स्वनियमन ही अभिव्यक्ति की
आजादी को खतरे से दूर रख सकता है.
किसी
मुद्दे को सनसनी के रुप में प्रस्तुत करने के आरोप पर राहुल कंवल ने कहा कि दिल्ली
सामूहिक दुष्कर्म मामले में मीडिया ने युवाओं के गुस्से को महसूस किया और उसे देश
के सामने रखा जिसका साकारात्मक प्रभाव सब के सामने है. इतना ही नही मीडिया की साकारात्मक
पहल के कारण ही आज समाज भ्रष्टाचार और महिला आजादी पर खुलकर बात कर रहा है.
मार्कण्डेय काटजू ने
राहुल कंवल की एनबीएसए के कार्यों की प्रशंसा पर सवाल उठाते हुए कहा कि एनबीएसए को
लाइसेंस रद्द करने के अधिकार होने चाहिए तभी यह सही मायने में कार्य कर पायेगी. जब
तक चैनलों में लाइसेंस रद्द होने और कड़े दंड का डर नही होगा तब तक समाचार चैनल
बकवास काम करता रहेगा. एन. राम ने सलाह दिया कि सारे कार्यरत मीडिया कर्मी को एनबीएसए
से त्यागपत्र दे देना चाहिए तभी यह सही मायने में स्वनियमन कर सकेगा. नही तो
व्यवसायिक हित हमेशा समाजिक हित पर हावी रहेगा.
राजनीतिक
समाजशास्त्री दिपांकर गुप्ता ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि मीडिया क्या न
करे इसकी भी परिभाषा तय की जानी चाहिए. उन्होने कहा कि एनबीएसए टीवी पत्रकारिता को
उत्तरदायी बनाने की दिशा में बेहतर काम कर रहा है.
सीएसडीएस के
परियोजना निदेशक विपुल मुद्गल ने कहा कि देश में लगभग ३०० चैनल राजनेताओं के पास
है जिसका प्रयोग वे जनमत को प्रभावित करने के लिए करते हैं. उन्होने मीडिया संकेंद्रन पर भी चिंता जाहिर की.
स्वनियमन के मुद्दे पर कहा कि मीडिया वैधानिक समर्थन प्राप्त स्वतंत्र संस्थान के
अधीन काम करे. उन्होंने जोर देकर कहा कि पहले नियमन और बाद में स्वनियमन की बात की
जानी चाहिए। मुद्गल के मुताबिक मीडिया का नियमन जनता द्वारा किया जाना चाहिए।
उन्होंने ब्राजील का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां पर मीडिया के लिए एक सिविल
चार्टर बनाया गया है जो मीडिया पर जनता का नियंत्रण स्थापित करता है। उन्होंने कहा
कि स्वनियमन वैधानिक ढांचे के भीतर ही होना चाहिए.
सम्मेलन में मुख्य
अतिथि के रुप में देश के पूर्व मुख्य न्यायधीश एम.वेंकटचलैया ने कहा कि वर्तमान
परिस्थिति को देखते हुए मीडिया के लिए नियामक संस्थान की आवश्यकता है. सरकारी
नियंत्रण मीडिया के स्वतंत्र विचारों पर
अंकुश लगा सकता है. उन्होने आगे कहा कि भले ही हमारे बीच कितने मामलों पर असहमति
हो लेकिन इस पूरे मुद्दे पर जरूर सहमति है कि मीडिया का नियमन सरकार के द्वारा
नहीं किया जाना चाहिए।
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