Real Social Servant and Real Pandit of India.
Monday, 3 December 2012
हम युवा का विवाह जब अपने से इतर जाति की प्रेमिका से नही होता है तो हम रोते-बिलखते हैं. उसकी बिछड़न की दुख में मरने को तैयार रहते हैं. ऐसे में जाति बड़ा या प्रेम? फिर हम जातिगत राजनीति में सक्रिय क्यों है?
जातिवाद के अंतर्दंद
में युवा
अभिमन्यु कुमार
लगता है
जाति और धर्म का दंश अगली पीढ़ी को भी झेलना पड़ेगा. मन में 440 वोल्ट के सामान उर्जा थी कि हम युवा देश
को बदल देंगे लेकिन समकालीन युवा को जातिगत ओछी राजनीति करते देख मेरी उर्जा 12 वोल्ट की हो जाती
है. अगर हम युवा ऐसी ही विचारधारा की नैया खेते रहेंगे तो अगली पीढ़ी भी जातिवाद
के समंदर में डूब जायेगी.
देश में कई
ऐसे उदाहरण पड़े हैं जिसमें ‘दलित नेता’ और ‘लाल नेता’ सत्ता प्राप्ति
के बाद उसके सुख की हरियाली में इतने खो जाते हैं कि लाल और ब्लू रंग की विचारधारा
गायब हो जाती है. बात साफ़ है कि जाति रुपी मोहरे को इसलिए जीवित रखा जाता है ताकि अपनी व्यक्तिगत
मंशा को पूरा किया जाए. वे नोट की माला पहनते हैं. वे फाईव स्टार जन्मदिन मनाते
हैं. और जो टुट-पुंजिया नेता हैं, जो इस तरह की चाहत रखते हैं वे दलित
शब्द को साध्य और युवाओं को साधन बनाकर अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा साध रहे हैं. वे
प्रेम रुपी महत्वकांक्षा से इनके कोरे मन को धोते हैं. फिर इतिहास की हड्डियां
नोचते हैं और उनके मन में इस बात को घर कर देते हैं कि जातिगत राजनीति से ही उनका
उद्धार संभव है. वे इनके जरिये अपनी विचारधारा को लोगो तक पहुंचाते हैं और इनके
कंधे पर बंदूक रख कर अपनी मंशा पूरी करते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि हम समझदार
युवा भी इनके चंगुल में फंस जाते हैं.
आज बुरे वक्त में जब अपने भी साथ छोड़ देते हैं तो इन नेताओं का प्यार
कितना प्रासांगिक है. यह बड़ा प्रश्न है.
कुछ दिन पहले मेरे एक दलित दोस्त ने एक ऐसे ही सम्मोहित दलित युवा की
विचारधारा में असहमति जताई तो उसने झल्लाते हुए मेरे दोस्त को कहा कि “ये नया ब्राह्मन
है.” क्या ‘दलित’ शब्द किसी की जागीर
है. इस वाकया से साफ संदेश मिलता है कि आज ‘दलित’ शब्द एक कौमोडिटी के रूप में इस्तेमाल
किया जा रहा है.

बात स्पष्ट है कि आज सत्ता लोभी नेता युवा को जातिवाद का टॉनिक इसलिए पिला
रहे हैं ताकि उनकी संकीर्ण राजनीतिक महत्वकांक्षा मजबूत
हो.
एक बात और मुझे आश्चर्य में डालता है कि जब हम युवा को अपने से इतर जाति की
प्रेमिका से प्रेम विवाह सफल नही होता है तो हम रोते-बिलखते हैं. उसकी बिछड़न की
दुख में मरने को तैयार रहते हैं. अब भाई साहब मुझे ये बताओ कि जाति बड़ा या प्रेम? अब क्या हम ये
चाहेंगे कि जिस दंश को हम झेले हैं या झेल रहे हैं उसे अगली पीढ़ी भी झेले? अगर हम इस
कुसंस्कृति को यहीं खत्म नही करेंगे तो आने वाला समय आज से भिन्न नही होगा. हमें
अपने भविष्य और इस तुच्छ राजनीति में से किसी एक को चुनना होगा. यही समय की
आवश्यकता है .
Wednesday, 28 November 2012
वेब पत्रकारिता का चमकता भविष्य
वेब पत्रकारिता
का
चमकता भविष्य
अभिमन्यु कुमार
सूचना
और संचार क्रांति के दौर में आज प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के बीच वेब
पत्रकारिता का चलन तेजी से बढ़ा है और अपनी पहचान बना ली है. अखबारों
की तरह बेव पत्र और पत्रिकाओं का जाल, अंतरजाल पर पूरी तरह बिछ चुका है.
छोटे-बड़े हर शहर से अमूमन बेव पत्रकारिता संचालित हो रही है. छोटे-बड़े सभी शहरों
के प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया भी वेब पर हैं. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता
है कि भारत में थोड़े ही समय में इसने बड़ा मुकाम पा लिया है. हालांकि समर अभी शेष
है और भविष्य उज्जवल.
क्या होती है वेब पत्रकारिता
जिस प्रकार अखबारों, पत्रिकाओं
में खबरों के चयन, संपादन या लेखन होते हैं. यही कार्य यदि
इंटरनेट पर किया जाता है तो वेब पत्रकारिता कहलाता है.
खुबियाँ
वेब पत्रकारिता एक ऐसा माध्यम जो अपने अंदर प्रिंट, टीवी और रेडियो को समेटे है. मीडिया का लोकतंत्रीकरण करने में वेब
पत्रकारिता बड़ी भूमिका निभा रहा है. संचार माध्यम के रूप में इस प्लेटफार्म ने हर
आदमी का आवाज बुलंद कर हजारों-करोड़ो लोगो तक पहुंचाया है. पहले जहां इंटरनेट
कम्प्यूटर तक सीमित था, वहीं नई तकनीकों से लैस मोबाइलों, स्मार्ट फोन और टैब में भी इंटरनेट का चलन बढ़ता जा रहा. किसी भी जगह
कहीं भी इंटरनेट का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह वेब पत्रकारिता का ही कमाल है कि
आप दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर किसी भी भाषा में, किसी
भी दिन और किसी भी देश का अखबार या खबरें पढ़ सकते हैं. यह ख़बरों का तीब्र माध्यम
के रूप में भी स्वीकारा गया है.
पहली बड़ी चुनौती कम्प्यूटर साक्षारता दर की है. दूसरी चुनौती भारत में
अभी भी वेब पत्रकारिता की पहुंच अगली पंक्ति में खड़े लोगों तक ही सीमित है. इधर
के दिनों में यह मध्यम वर्ग तक भी आया है. जहां तक अंतिम कतार में खड़े लोगों तक
पहुंचने की बात है तो अभी यह कोसों दूर है. हालांकि अंतरजाल मुहैया कराने वाली
कंपनियों ने मोबाइल फोन और ग्रामीण क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दिया है और इंटरनेट
अब गांवों तक पहुंच गया है. तीसरी चुनौती पत्रकारों के समक्ष तकनीकी ज्ञान की है.
अन्य चुनौती के रूप में वेब पत्रकारिता में सबसे बड़ा सवाल विश्वसनीयता को लेकर भी
है. आज लोगों को इतनी जगहों से समाचार मिल रहे हैं कि लोगों के लिए समाचारों की
विश्वसनीयता एक बड़ा मुद्दा है. यह वेब पत्रकारिता के लिए भी एक बड़ी चुनौती है.
भविष्य

वर्ल्ड बैंक के मुताबिक 2011 तक भारत में 12.5 करोड़ लोग इंटरनेट इस्तेमाल कर रहे थें जिसकी संख्या में तीव्र वृद्धि
होगी.
वेब पत्रकारिता का उज्जवल भविष्य इस बात से भी आंका
जा सकता है कि भारत में मोबाइल तकनीक और फोन सेवा प्रदान करने बाले बड़े टेलिकॉम
ऑपरेटरों ने 3G सेवाओं के लाइसेंस के लिए हाल ही में करीब 16 अरब डॉलर यानी 75,600 करोड़ रुपए की बोली लगाई.
पहुंच
वेब पत्रकारिता की पहुंच एक निश्चित
भौगोलिक सीमा तक नही है अपितु इसकी पहुंच वैश्विक है. वेब पत्रकारिता करने वालों
का दायरा बहुत बड़ा हो जाता है. उनकी ख़बर एक पल में सारी दुनिया में पहुँच जाती
है जो कि अन्य समाचार माध्यमों में संभव नहीं है.
1. हिंदी इनस्क्रिप्ट की बोर्ड की जानकारी हो
2. यूनिकोड फाँट तकनीकि पर काम करें
3.वेब पत्रकारिता के समाचार सूचनापरक होना
चाहिए. वाक्य छोटे होने चाहिए.
4.सर्च इंजन का की-वर्ड समाचार में कम से कम दो-तीन
बार जरूर लायें.
5. कुछ की-वर्ड समाचार के हेड-लाईन में भी जरूर
लायें.
6. समय का ख्याल रखें- आज, कल
और परसो से बचें
7.संस्था का नाम भी समाचार में जरूर लायें.
8.Active-Voice में ख़बरों को
लिखें.
9.तीसरे या चौथे पाराग्राफ के बाद समाचार का
बैक-ग्राउंड दें.
10.तस्वीरें और ग्राफिक से पेज को सजायें
11. संदर्भ और स्रोत का भरपूर उपयोग करें.
Subscribe to:
Posts (Atom)